मेरे हमनफस मेरे हमनवा मुझे दोस्त बन के दगा न दे …
उस्ताद एस. शेख
चंडीगढ़, 11 अप्रैल (ट्रिन्यू)। प्राचीन कला केंद्र ने अपनी मासिक बैठकों की शृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज 186वीं बैठक का आयोजन किया जिसमें अलीगढ़ के उस्ताद एस. शेख ने शास्त्रीय संगीत की बंदिशें व गजलें प्रस्तुत कीं।
इंदौर घराने के उस्ताद एस.शेख बचपन से ही नेत्रहीन थे। उनकी संगीत और हिन्दी साहित्य में गहरी रुचि थी। उन्होंने अलीगढ़ विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री तथा प्राचीन कला केंद्र से शास्त्रीय में संगीत भास्कर तक शिक्षा प्राप्त की। इसके अतिरिक्त उन्होंने संगीत की शिक्षा इंदौर घराने के सुप्रसिद्ध गायक और वायलिन वादक पंडित रोमेश तागड़े से ग्रहण की। 1995 से वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं। इसके अलावा तानसेन संगीत महाविद्यालय के निदेशक पद का कार्यभार भी संभाल रहे हैं। आकाशवाणी के ग्रेडिड कलाकार उस्ताद शेख ने भारत में बहुत-सी प्रस्तुतियां दी हैं और उन्हें बहुत सम्मानों से भी नवाजा गया है।
आज की बैठक में उनके दोनों पुत्रों शिराजद्दीन ने तबला और शाहिद शेख ने हारमोनियम पर पिता और गुरु का बखूबी साथ दिया। उस्ताद ने राग रागेश्वरी के आलाप से गायन प्रारंभ किया और विलम्बित लय में एक बंदिश ‘सखी मन लागे नाÓ प्रस्तुत की। इसी राग में एक और बंदिश ‘मोरे नैना बरसन लागे रे’ द्रुत लय में प्रस्तुत की। उन्होंने एक प्रभावशाली तराना भी पेश किया। दर्शकों की सराहना से प्रेरित होकर उस्ताद जी ने एक ठुमरी ‘कैसे कटी मोरी रैना’ राग मिश्र गारा में प्रस्तुत की। बदलाव के तौर पर में श्रोताओं की फरमाइश पर बशीर बद्र की गज़ल ‘भूल शायद बहुत बड़ी कर ली दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली’ पेश की। उसके बाद फरमाइश पर उन्होंने शकील बदायु की प्रचलितगज़ल ‘मेरे हमनफस में हमनवा मुझे दोस्त बन के दगा न दे’ पेश की।